राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने अपने हालिया संबोधन में स्पष्ट कहा कि जलवायु संकट वास्तविक है और मानव जीवन पर इसका प्रभाव लगातार बढ़ रहा है। उन्होंने चेतावनी दी कि अंधाधुंध भौतिकवाद और प्रकृति से असंतुलित संबंध ही बाढ़, भूस्खलन और ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने जैसी आपदाओं के मूल कारण हैं।
भागवत ने कहा कि जब मनुष्य प्रकृति से कट जाता है और केवल उपभोग तथा भौतिक सुख की ओर बढ़ता है, तो प्राकृतिक संतुलन बिगड़ जाता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत को दुनिया के सामने एक “धार्मिक (धर्मनिरपेक्ष अर्थों में) विकास मॉडल” प्रस्तुत करना चाहिए, जो धर्म से परे मानव और प्रकृति के सामंजस्य, संतुलन और सामूहिक कल्याण पर आधारित हो।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि आज की आपदाएं—चाहे वह भूस्खलन हो, अचानक आई बाढ़ हो या हिमनदों का सिकुड़ना—सब इस असंतुलित जीवनशैली का परिणाम हैं। परंपरागत भारतीय दृष्टिकोण, जिसमें प्रकृति को पूजनीय माना गया है, इस संकट का समाधान प्रस्तुत कर सकता है।
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