जम्मू-कश्मीर में सेब उत्पादकों की उम्मीदें इस साल टूटती नजर आ रही हैं क्योंकि एक प्रमुख राजमार्ग की बंदी ने उनकी फसल को भेजने के साधन ही रोक दिए हैं। हाइवे बंद रहने के कारण सेब बाजार में नहीं पहुंच पा रहे हैं, फल सड़ रहे हैं और उनकी कीमतों में लगभग 40 प्रतिशत की गिरावट आ गई है। खेतों से ट्रकों में लदे सेब जब समय रहते अपने गंतव्य पर नहीं पहुँच पाते, तो बाजार में उनकी ताजगी और गुणवत्ता घटती है। खरीददार भी घटते दाम देखकर हाथ पीछे खिसका लेते हैं। उत्पादकों का कहना है कि लागत तो वैसे ही बढ़ी है — श्रम, परिवहन, पैकेजिंग — लेकिन बाहर निकलने का रास्ता बंद है।
इस समस्या से अकेले कीमतों में गिरावट ही नहीं हुई, बल्कि किसानों पर आर्थिक दबाव बढ़ गया है। सैकड़ों ट्रकों में भरे सेब खेतों पर ही पड़े हैं और सड़ने की कगार पर हैं। जगह-जगह उत्पादन घटने की बातें हो रही हैं — जो फलियां उजड़े, नकदी कम हो गयी।उत्पादकों का आरोप है कि केंद्र सरकार और स्थानीय प्रशासन उन परिस्थितियों की जिम्मेदारी नहीं ले रहे जिनसे घाटी की फलों की अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है। यह महसूस हो रहा है कि हाइवे बंदी, बेरोक-टोक परिवहन की अनुमति और बेहतर बाजार पहुँच की व्यवस्था नहीं होने से सेब उत्पादकों को जानबूझकर कमजोर स्थिति में रखा जा रहा है।
अब मांग यह है कि राजमार्गों को तुरंत खोलने की व्यवस्था हो, फल परिवहन की अनुमति बढ़े, और स्थानीय किसानों को कुछ आर्थिक राहत दी जाए ताकि ये नुकसान और न बढ़े। यदि जल्दी कदम नहीं उठाए गए, तो घाटी के फल-उद्योग की साख और किसानों की जिंदगी दोनों संकट में पड़ सकती है।
इस कदम से भारतीय निर्यातों पर भारी दबाव पड़ा है।
उन्होंने यह भी साझा किया कि पंजाबी भाषा सीखने का उनका अनुभव बेहद प्रेरणादायक रहा...
जाँच से पता चला है कि घटना मंगलवार रात हुई थी।
सौभाग्य से इस घटना में सभी यात्री और क्रू सदस्य पूरी तरह सुरक्षित रहे