वरिष्ठ गीतकार और पटकथा लेखक जावेद अख्तर ने भारतीय सेंसरशिप प्रणाली पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने कहा कि देश में आज ऐसी फिल्मों को आसानी से मंजूरी मिल जाती है जिनमें अश्लीलता और भद्दे दृश्य होते हैं, जबकि वे फिल्में जो समाज का यथार्थ दिखाने की कोशिश करती हैं, सेंसर बोर्ड के पेंच में फंस जाती हैं।
बेंगलुरु में आयोजित ‘अनंतरंग’ मेंटल हेल्थ कल्चरल फेस्टिवल के उद्घाटन सत्र में बोलते हुए अख्तर ने कहा, “हमारे देश में अश्लीलता को तो पास कर दिया जाता है, लेकिन जो फिल्म समाज को आईना दिखाती है, उसे रोक दिया जाता है।” उन्होंने सेंसर प्रक्रिया को पुरुषवादी मानसिकता से ग्रसित बताया, जो महिलाओं को अपमानित करने वाले गीतों और दृश्यों को तो मंजूरी देती है, लेकिन सामाजिक मुद्दों को छूने वाली फिल्मों को नहीं।
अख्तर ने यह भी कहा कि केवल सेंसर बोर्ड ही दोषी नहीं है, बल्कि दर्शक भी इसकी जिम्मेदारी साझा करते हैं। उनके शब्दों में, “खराब दर्शक ही खराब फिल्मों को हिट बनाते हैं।” उन्होंने कहा कि जब जनता खराब सामग्री को स्वीकार करती है, तो फिल्म निर्माता उसी तरह की फिल्में बनाते हैं।
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इस कदम से भारतीय निर्यातों पर भारी दबाव पड़ा है।
उन्होंने यह भी साझा किया कि पंजाबी भाषा सीखने का उनका अनुभव बेहद प्रेरणादायक रहा...
जाँच से पता चला है कि घटना मंगलवार रात हुई थी।
सौभाग्य से इस घटना में सभी यात्री और क्रू सदस्य पूरी तरह सुरक्षित रहे