पैड वुमन ऑफ इंडिया
डॉ. भारती लवेकर को किसी बड़े ओहदे या राजनैतिक ताकत से नहीं मिला, बल्कि उनके अपने जीवन के संघर्ष और समझ से मिला है। वह एक मिडल क्लास परिवार में पली-बढ़ीं। बचपन में उन्होंने देखा कि पीरियड्स को घरों में शर्म की बात माना जाता था और इस पर कोई बात नहीं करता था। उनकी माँ और आस-पास की महिलाएँ पुराने कपड़े, राख या कभी-कभी रेत का इस्तेमाल करती थीं, क्योंकि उनके पास पैड खरीदने का पैसा नहीं था और जानकारी भी नहीं थी।डॉ. भारती को तभी से लगा कि इस पर कुछ करना चाहिए। राजनीति में आने से पहले ही वह गरीब इलाकों में जाकर औरतों और लड़कियों से पीरियड्स के बारे में खुलकर बात करती थीं। वह समाज की पुरानी सोच को बदलना चाहती थीं।एक बार जब वह अपने इलाके में गईं, तो उन्होंने देखा कि हालत आज भी वैसे ही हैं—लड़कियाँ स्कूल छोड़ रही थीं क्योंकि उनके पास पैड नहीं थे, और महिलाएँ अब भी कपड़ा इस्तेमाल कर रही थी । इस बात ने उन्हें बहुत दुखी किया। तभी उन्होंने 'टी फाउंडेशन सैनिटरी पैड बैंक' की शुरुआत की।
इस बैंक के ज़रिए उन्होंने सिर्फ पैड बाँटने का काम नहीं किया, बल्कि सम्मान और समझ भी दी। उन्होंने जगह-जगह पैड की वेंडिंग मशीन, डिस्पोजल सिस्टम और किट्स लगवाए। स्कूलों में जाकर बच्चों से बात की, लड़कों से भी, ताकि सबको समझ आए कि पीरियड्स कोई शर्म की बात नहीं है। कई बार लोग उनका मज़ाक उड़ाते थे या कहते थे कि ऐसे ‘गंदे’ मुद्दों पर बात न करो। लेकिन डॉ. भारती नहीं रुकीं। उनके लिए ये सिर्फ एक काम नहीं था, बल्कि एक ज़िम्मेदारी बन गई थी—उन औरतों और लड़कियों के लिए, जो अपनी बात नहीं कह सकतीं।
डॉ. भारती लवेकर आज हिम्मत, करुणा और मजबूती की मिसाल हैं। उन्हें 'पैड वुमन' का नाम इसलिए मिला क्योंकि उन्होंने लाखों महिलाओं की ज़िंदगी में बदलाव लाया है। उनका काम हमें सिखाता है कि बदलाव बड़ी कुर्सी से नहीं, बल्कि छोटी-छोटी तकलीफों और चुप्पियों से शुरू होता है।डॉ. भारती की कहानी हमें बताती है कि पीरियड्स कोई गंदी बात नहीं, बल्कि एक सच्चाई है जिसे समझना और सम्मान देना जरूरी है।